Jai Jhulelal
Kolhapur Sindhi Samaj is the social organisation [usually called as Panchayat] of Sindhis, Sindhis by Cast who are residing in Kolhapur city. Officially institution was established in 2006 and full flagged functioning has been started since 2009. Kolhapur Sindhi Samaj will be having their own community building in very near future for the social and religious functions of Sindhis living in Kolhapur city. Kolhapur Sindhi Samaj has already purchased a plot measuring 40,000 sq.feet at Jadhavwadi opp. Market Yard Kolhapur. Guru Nanak Jayanti is the annual celebration of the Kolhapur Sindhi Samaj, along with celebration of Cheti Chand- Sindhi New Year day.
Pan Number :- AAAAK8925H
Reg. Number:- 22437-16/06/2006
Trust No.:- F21405/KOP 9/5/2011
IT Certificate No. :- 80G/42-21/291 6/5/2014
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80G Certificate will be given to all the Doners
Acc. Name: – Kolhapur Sindhi Samaj
Bank: – Bank Of Baroda
Account No.:- 4340200000613
Branch: – Shivaji Chowk
Ifsc No. :- BARBOSHIKOL
“GOD BLESS ALL. BE GOOD – DO GOOD – BE SAFE.”
For any query please contact
Shri Subhash Chandwani 9822043395
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सिन्ध के मूल निवासियों को सिन्धी (सिन्धी भाषा : سنڌي ) कहते हैं। यह एक हिन्द-आर्य प्रजाति है। १९४७ में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद सिन्ध के अधिकांश हिन्दू और सिख वहाँ से भारत या अन्य देशों में जाकर बस गये। १९९८ की जनगणना के अनुसार सिन्ध में ६.५% हिन्दू हैं। सिन्धी संस्कृति पर सूफी सिद्धान्तों का गहरा प्रभाव है। सिन्ध के लोकप्रिय सांस्कृतिक पहचान वाले कुछ लोग ये हैं- राजा दाहिर, शाह अब्दुल लतीफ, लाल शाहबाज कलन्दर, झूलेलाल, सचल सरमस्त, और शंबूमल तुलसियानी।
Facts About Sindhi People We Might Didn’t Know!
#1. Our Roots:
After the partition of our country, Hindu Sindhi’s that hailed from Sindh Province in present Pakistan fled the country and settled in various parts of India, especially- Rajasthan, Gujarat, and Maharashtra. India’s largest Sindhi dominant region is Ulhasnagar in Mumbai.
You will also find a lot of Sindhi’s in the UAE (Dubai), Hong Kong, Spain, Canada, the U.K., Malaysia, Indonesia, and the U.S etc.
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#2. Our Religious Beliefs:
The Sindhis that chose not to convert to Islam moved to India at the time of Independence. Most of the Sindhi’s in India are either Hindu or follow the tenets of Sikhism- making them Sahajdari.
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#3. Sindhi New Year:
Cheti Chand is an important festival celebrated as New Year’s Day by Sindhi people of India and Pakistan. According to the Hindu calendar, it is the second day of the month chaitra, known as Chet in the Sindhi language. Hence it is known as Chet-e-Chand.
The Sindhi community celebrates the festival of Cheti Chand in honour of the birth of Jhulelal, the patron saint of the Sindhis. This day is considered to be very auspicious. On this day, people worship water – the elixir of life.
Many Sindhis take Baharana Sahib to a nearby river or lake which consists of Jyoti (Oil lamp), Misiri (sugar), Fota (cardamom), Fal (fruits), Akha (rice), Kalash (Water jar) and a Nariyal (Coconut) in it, covered with cloth, flowers, and leaves. There is also a statue of Pujya Jhulelal.
#4. Sindhi Surnames:
Yes, we do have a lot of surnames with an “-ani” suffix, but come on! If we go by the “-ani” rule, then Dhirubhai Ambani would be Sindhi too!
A lot of us have surnames like Bhatia, Makhija, Ahuja, Kukreja, Chawla, Nagpal, and Khatri etc.
- Sindhi tend to have surnames that end in ‘-ani‘ (a variant of ‘anshi‘, which means ‘descended from’). The suffix of a Sindhi Hindu surname is usually derived from the name or location of an ancestor.
- In northern Sindh, surnames ending in ‘ja‘ (meaning ‘of’) are also common. A person’s surname would consist of the name of his or her native village, followed by ‘ja’.
#5. BUSINESS is not the Only Sindhi Profession!
Yes, most of us are into business but a lot of us have other Professions too!
For instance, our very own Ranveer Singh Bhavnani is a top-notch Bollywood Actor, Ram Jethmalani- cream of the crop Lawyer, and Vishal Dadlani- our A-listed Music Composer/ Producer/ Singer. Not every Sindhi is meant to be a businessman- we have other talents too!
One More Clarification: Yes, we may not all wake up at 7 in the morning, but even if we start working around 10-11, we work late hours- sometimes until 12pm-1am too!
#6. Sindhi Food!
Aren’t you tired of asking all your Sindhi friends about the kadhi? Try our Saai Bhaji, Doda, Taairi, Aloo Tuk, Mitho Lolo and I promise you’ll crave for some more! It’s that good!
Also, most of us love our Papad but that sure does not mean that we’re not a “True Sindhi” if we don’t eat it every day! Basing our roots to “Sindhi Sai Papad Khaayin” would be totally unfair!
इतिहास :-
ईसा के 3300 साल पहसे से ईसापूर्व 1900 तक यहाँ सिंधु घाटी सभ्यता फली-फूली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने समकालीन
मिस्र और मेसोपोटामिया के साथ व्यापार करती थी। मिस्र में कपास के लिए ‘सिन्ध’ शब्द का प्रयोग होता था जिससे
अनुमान लगता है कि वहाँ कपास यहीं से आयात किया जाता था। ईसा के 1900 साल पहसे सिंधु घाटी सभ्यता अनिर्णीत
कारणों से समाप्त हो गई। इसकी लिपि को भी अब तक पढ़ा नहीं जा सका जिससे इसके मूल निवासियों के बारे में अधिक
पता नहीं चल पाया है।
सिन्ध का नाम ‘सप्त सैन्धव’ था जहां सिन्धु सहित शतद्रु, विपाशा, चन्द्रभागा, वितस्ता, परुष्णी और सरस्वती बहती थीं।
सिन्धु के तीन अर्थ हैं- सिन्धु नदी, समुद्र और सामान्य नदियां। ऋग्वेद कहता है मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः।
कालान्तर में इस भूभाग से सप्त सिन्धव लुप्त होकर सिन्ध रह गया है, जो खण्डित भारत यानी पाकिस्तान का सिन्ध
प्रदेश है।
ईसा के 1500 साल पहले भारतीय (तथा ईरानी) क्षेत्रों में आर्यों का अगमन आरंभ हुआ। आर्य भारत के कई हिस्सों में बस गए।
ईरान में भी आर्यों की बस्तियाँ फैलने लगीं। भारतीय स्रोतों में सिन्ध का नाम सिंध, सिंधु, सिंधुदेश तथा सिंधुस्थानजैसे
शब्दों के रूप में हुआ है।
700 ईस्वी में हिन्दू ब्रााहृण राजा दाहर सिन्ध के शासक थे। उनके स्वर्णयुग में समुद्री अरबी लुटेरे सिन्ध में पैठ करते रहे।
धीरे-धीरे खलीफा की ओर से मीर कासिम के नेतृत्व में सिन्ध में अरबी सैनिकों ने मोर्चा खोला। उनसे युद्ध करते हुए राजा दाहर शहीद हो गए। सिन्ध में अरब घुस आया। दाहर की रानी वीर बाला ने अधूरे युद्ध को हवा दी। युद्ध छिड़ गया। रानी ने अरबों के खिलाफ प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग किया। रानी जीत गई किन्तु राजपूतानी परम्परा के अनुसार उन्होंने जौहर कर अपनी मर्यादा की रक्षा की। इसके बाद सिन्ध में इस्लाम की घुसपैठ शुरू हो गई। अधिसंख्यक हिन्दू इस्लामी आतंक के चलते मुसलमान हुए। उस समय सिन्ध के दलित वर्ग के लोग छुआछूत, भेदभाव और सामाजिक अवमानना से खिन्न होकर इस्लाम में आ गए। इस्लामी आतंक के चलते ब्राह्मण दाहर के पुत्र जयसिंह भी मुसलमान हो गए। यदि हिन्दू राजाओं ने जयसिंह की सहायता की होती तो वे मतान्तरित न होते। भयाक्रांतता के चलते हिन्दू इस्लाम को मानने के लिए मजबूर हुए। राजनीतिक अलगाववादी नीति के चलते मतान्तरित मुसलमान मुख्यधारा से आज तक जुट न पाए। ब्राह्मणवाद इस्लामवाद हो गया। अरबी बहुत दिनों तक सिन्ध में रहे और अपने खौफनाक रवैये के जरिए हिन्दुओं को इस्लाम में लाते रहे। मतान्तरित मुसलमान नारियां भी हिन्दुओं के इस्लामीकरण का काम करने लगी थीं। सिन्ध से लेकर ब्लूचिस्तान तक जितने कबीले, जनजातियां, शोषित, पीड़ित और दलित वर्ग के लोग थे, उनके पुरखे हिन्दू थे। उनकी निर्धनता, अशिक्षा पिछड़ापन और मजबूरी को ध्यान में रखकर अरबों ने उन्हें मुसलमान बना डाला। इस प्रकार सिन्ध के हिन्दुओं में फूट, आपसी कलह और भेदभाव के चलते अन्तत: वे मतान्तरित हुए। धीरे-धीरे सिन्ध में मुसलमान अधिसंख्यक हो गए और बचे खुचे हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए। अब अल्पसंख्यक हिन्दू सिन्ध प्रान्त में इस्लाम की ओर झुक रहे हैं।
सिन्ध में अनेक गरीब राजपूत वर्ग के लोगों ने भी इस्लाम को मान लिया था। देश के हिन्दू राजाओं में आपसी मनमुटाव, प्रतिद्वन्द्विता और शत्रुत्रा थी। वे हिन्दुओं को क्या बचा पाते? आज भी देश में अधिसंख्यक हिन्दुओं में पारस्परिक एकता का अभाव है। देश में जात-पांत का बोलबाला है। अनेक जातिवादी घटक हैं। दलगत नीतियों का वर्चस्व है। ऐसी ही भयावह स्थिति 700 ईस्वी में सिन्ध में थी। देश की इन दुर्बलताओं से अरबी लुटेरों और आक्रान्ताओं ने लाभ उठाया। उन दिनों सिन्ध में इस्लामीकरण का अभियान था। “इस्लाम कबूलो” या मौत कबूलो। हताश जनता ने इस्लाम ही कबूल लिया और उन्हें सहानुभूति मिली। ऐसा ही
मुगलकाल में भी हुआ था। सिन्ध से हम हिन्दू हुए हैं। वरुण देवता झूलेलाल के अनुयायी हिन्दू अपने को सिन्धी कहते हैं। दाहर सिन्धी थे। पाक अधिकृत सिन्ध प्रान्त के वर्तमान मुसलमानों के पुरखे हिन्दू थे, यानी सिन्धी।
सिन्ध की संस्कृति सिन्धु संस्कृति के नाम से जानी जाती है। सप्त सैन्धव संस्कृति आर्य संस्कृति है
वह वैदिक ललित पुष्प है। उसकी गन्ध सनातन और शाश्वत है।
ईसा के 500 साल पहले यहाँ ईरान के हख़ामनी शासकों का अधिकार हो गया। यह घटना इस्लाम के
आगमन से कोई 1000 साल पहले की है। फ़ारस, यानि आज का ईरान, पर यूनान के सिकंदर का
अधिकार हो जान के बाद सन् 328 ईसापूर्व में यह यवनों के शासन में आया। ईसापूर्व 305 में
मौर्य साम्राज्य के अंग बनने के बाद यह ईसापूर्व 185 से करीब सौ सालों तक ग्रेको-बैक्टि्रयन शासन में
रहा। इसके बाद गुप्त और फिर अरबों के शासन में आ गया। मुगलों का अधिकार सोलहवीं सदी में हुआ।
यह ब्रिटिश भारत का भी अंग था।